08-11-81  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा       मधुबन

"अन्तर सम्पन्न करने का साधन - ‘तुरन्त दान महापुण्य"

गुणों के सागर अव्यक्त बापदादा बोले:-

''आज बापदादा सवेरे प्रात:काल की वतन की,बापदादा दोनों के रूह-रूहान की चित्रों सहित कहानी सुनाते हैं। कहानी सुनने में सबको रूचि होती है ना! तो आज की कहानी क्या थी? ब्रह्मा बाप वतन के बगीचे में सैर कर रहे थे। सैर करते हुए सामने कौन थे? बाप के सामने सदा कौन रहते हैं? यह तो सभी अच्छी तरह से जानते हो ना? बाप बच्चों की माला स्मरण करते। कौन-सी माला? गुण माला। तो ब्रह्मा बाप गुण माला स्मरण कर रहे थे। शिव बाप ने ब्रह्मा से पूछा - ‘‘क्या स्मरण कर रहे हो?'' ब्रह्मा बाप बोले - ‘‘जो आपका काम सो मेरा काम'' बच्चों के गुण-मालाओं को देख रहे थे। शिव बाप पूछे - ‘‘क्या-क्या देखा?'' क्या देखा होगा? कोई बच्चों की सिर्फ नैकलेस के माफिक माला थी और कोई बच्चों की पाँव तक लम्बी माला थी। कोई बच्चों की कई लड़ियों की माला थी। कोई बच्चे इतनी मालाओं से सजे हुए थे जैसे मालायें उनकी ड्रेस बन गई थी।

ब्रह्मा बाप वैरायटी गुण-मालाओं से सजे हुए बच्चों को देख-देख हर्षित हो रहे थे। आप हरेक अपनी गुण-माला को जानते हो? कितने सजे हुए हो, यह अपना चित्र देखते हो? ब्रह्मा बाप चित्र-रेखा बन चित्र खींच रहे थे। अर्थात् चित्र में तकदीर की रेखायें खींच रहे थे। आप स्वयं भी स्वयं का चित्र अर्थात् तकदीर की तस्वीर खींच सकते हो ना? फोटो खींच सकते हो ना? फोटो निकालने आता है? अपना वा दूसरे का? अपना फोटो खींचने आता है? तो आज सबका फोटो वतन में था। कितना बड़ा कैमरा होगा! सिर्फ आप लोगों का नहीं, सभी ब्राह्मणों का फोटो था। मालाओं का श्रृंगार देखते कोई-कोई बच्चों की विशेषता क्या देखी - हर गुण हीरों के रूप में वैरायटी रूप रेखा और रंग वाले थे। विशेष चार प्रकार के रंग थे। जिसमें मुख्य चार सब्जेक्टस के चार रंग थे। सब्जेक्ट तो जानते हो ना? ज्ञान-योग-धारणा और सेवा।

ज्ञान स्वरूप की निशानी कौन-सा रंग होगा? ज्ञान स्वरूप की निशानी - गोल्डन कलर जो हल्का-सा गोल्ड कलर होने के कारण उस एक ही हीरे से सर्व रंग दिखाई देते थे। एक ही हीरे से भिन्न-भिन्न रंगों की किरणों के माफिक चमक दिखाई देती थी। दूर से ऐसे अनुभव करेंगे जैसे चमक रहा है। और यह उससे भी सुन्दर सूर्य। क्योंकि सर्व रंगो की किरणें दूर से ही स्पष्ट दिखाई देती थीं। चित्र सामने आ रहा है ना! कैसे चमक रहा है हीरा?

याद की निशानी - यह तो सहज है ना? याद में यहाँ भी बैठते हो तो क्या करते हो? लाल रंग। लेकिन इस लाल रंग में भी गोल्डन रंग मिक्स था, इसलिए आपकी इस दुनिया में वह रंग नहीं है। कहने में तो लाल रंग आयेगा।

धारणा की निशानी सफेद रंग। लेकिन सफेदी में भी जैसे चन्द्रमा की लाईट के बीच सुनहरी रंग मिक्स करो या चाँदनी के रंग में हल्का-सा पीला रंग एड करो तो दिखाई चांदनी जैसा देगा लेकिन हल्का सा सुनहरी होने के कारण उसकी चमक और ही सुन्दर हो जाती है। यहाँ वह रंग बना नहीं सकेंगे। क्योंकि वे चमकने वाले रंग हैं। कितनी भी ट्रायल करो लेकिन वतन के रंग यहाँ कहाँ से आयेंगे?

सेवा की निशानी हरा रंग। सेवा में चारों ओर हरियाली कर देते हो ना! कांटो के जंगल को फूलों का बगीचा बना देते हो।

तो अभी सुना चार रंग कौन से हैं? इन चार रंगो के हीरों से सजी हुई मालायें सबके गले में थीं। इसमें भिन्न-भिन्न साइज और चमक में अन्तर था। कोई की ज्ञान स्वरूप की माला बड़ी थी तो कोई की याद स्वरूप की माला बड़ी थी। और कोई-कोई की चार ही मालायें थोड़े से अन्तर में थी। जिन्हों की चार ही रंगों की अनेक मालायें थीं- वह कितने सुन्दर लगते होंगे? तो बापदादा सबकी रिजल्ट मालाओं के रूप में देख रहे थे। दूर से हीरे ऐसे चमक रहे थे जैसे छोटे-छोटे बल्बों की लाइन-यह था चित्र। अब इस चित्रों द्वारा रिजल्ट देख ब्रह्मा बाप बोले - ‘‘समय की रफ्तार प्रमाण सर्व बच्चों का श्रृंगार सम्पन्न हुआ है?'' क्योंकि रिजल्ट में तो अन्तर था। तो इस अन्तर को सम्पन्न कैसे करें? ब्रह्मा बाप बोले - ‘‘बच्चे मेहनत तो बहुत करते हैं! मेहनत के साथ सबकी इच्छा भी है, संकल्प भी करते हैं''। बाकी क्या रह गया? जानते तो सब हो ना! नालेजफुल तो बन गये हो। तो बताओ क्या अन्तर रह जाता है, जिससे कोई की नैकलेस, कोई की पाँव तक लम्बी मालायें, वह भी अनेक मालायें? सुनते भी एक हो, सुनाते भी एक हो, विधि भी सबकी एक है और विधाता भी एक है, विधान भी एक है, बाकी क्या अन्तर रह जाता है? संकल्प भी एक है, संसार भी एक है? फिर अन्तर क्यों?

ब्रह्मा बाप को आज बच्चों पर बहुत-बहुत स्नेह आ रहा था। सभी चित्रों को सम्पन्न बनाने के लिए तीव्र उमंग आ रहा था कि अभी का अभी ही सबको मालाओं से सजा दें। बाप तो सजा भी दें लेकिन धारण करने की समर्था भी चाहिए! सम्भालने की समर्था भी चाहिए। तो ब्रह्मा ने शिव बाप से पूछा - क्या बात है? बच्चे साथ चलने के लिए सम्पूर्ण सजते क्यों नहीं हैं? साथ में तो सजे सजाये ही जायेंगे। कारण क्या निकला? शिव बाप बोले - अन्तर तो छोटा-सा है। सोचते सब हैं, करते भी सब हैं लेकिन कोई- कोई हैं जो सोचते और करते एक ही समय पर हैं। अर्थात् सोचना और करना साथ-साथ है, वह सम्पन्न बन जाते हैं और कोई-कोई हैं जो सोचते हैं और करते भी हैं लेकिन सोचने और करने के बीच में मार्जिन रह जाती है। सोचते बहुत अच्छा हैं लेकिन करते कुछ समय के बाद हैं। उसी समय नहीं करते हैं। इसलिए संकल्प मे जो उस समय की तीव्रता, उमंग-उल्लास-उत्साह होता है वह समय पड़ने से परसेन्टेज कम हो जाती है। जैसे गर्म वा ताजी चीज़ का अनुभव और ठण्डी वा रखी हुई चीज़ का अनुभव में अन्तर आ जाता है ना! ताजी चीज़ की शक्ति और रखी हुई चीज़ की शक्ति में अन्तर पड़ जाता है ना! चीज़ कितनी भी बढ़िया हो लेकिन रखी हुई तो उसकी रिजल्ट वही नहीं निकल सकती। ऐसे संकल्प जो करते हैं वह उसी समय प्रैक्टिकल में करना-उसकी रिजल्ट, और सोचना आज, करना कब, उसकी रिजल्ट में अन्तर पड़ जाता है। बीच में समय की मार्जिन होने के कारण, एक तो सुनाया कि परसेन्टेज सब की कम हो जाती है। जैसे ताजी चीज़ के विटामिन्स में फर्क पड़ जाता है। दूसरा - मार्जिन होने के कारण समस्याओं रूपी विघ्न भी आ जाते हैं। इसलिए सोचना और करना साथ-साथ हो। इसको कहा जाता है - ‘‘तुरन्त दान महापुण्य।'' नहीं तो महापुण्य के बजाए पुण्य हो जाता है। तो अन्तर हो गया ना? महापुण्य की प्राप्ति और पुण्य की प्राप्ति में अन्तर हो जाता है। समझा कारण क्या है? छोटा सा कारण है। करते भी हो सिर्फ ‘अब' के बजाए ‘कब' करते हो इसलिए मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है। तो ब्रह्मा बाप बच्चों से बोले - ‘‘अब इस कारण का निवारण करो।'' सुना आज की कहानी! दोनों बाप के बीच की कहानी। अब क्या करेंगे? निवारण करो। निवारण करना ही निमार्कण करना हो जायेगा। तो स्व में भी नव-निमार्कण और विश्व में भी नव-निर्वाण। अच्छा! ऐसे सदा सजे-सजाये, सोचना और करना समान बनाने वाले, सदा बाप समान तुरन्त दानी महापुण्य-आत्मायें, दोनों बाप के शुभ इच्छा को पूर्ण करने वाले, ऐसे सम्पन्न आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

टीचर्स के साथ- सेवाधारी अमृतवेले से लेकर रात तक सेवा की स्टेज पर हो? अगर आराम भी करते हो तो भी स्टेज पर हो, स्टेज पर भी सोने का पार्ट बजाते हैं ना! सबकी नजर होती है कि कैसे सोये हुए हैं। इस रीति सेवाधारी अर्थात् 24 घण्टे स्टेज पर पार्ट बजाने वाले। तो हर कदम, हर सेकण्ड सारी विश्व के आगे हैं। सेवाधारी सदा हीरो पार्टधारी समझ करके चलें, सेंटर पर नहीं बैठे हो लेकिन स्टेज पर बैठे हो, विश्व की स्टेज पर। तो इतना अटेन्शन रहने से हर संकल्प और कर्म स्वत: ही श्रेष्ठ होंगे ना! नैचुरल अटेन्शन होगा। अटेन्शन देना नहीं पड़ेगा लेकिन रहेगा ही क्योंकि स्टेज पर हो ना! और सदा अपने को पूज्य आत्मा समझो तो पूज्य आत्मा अर्थात् पावन आत्मा। कल्प-कल्प पूज्य हैं। पूज्य समझने से संकल्प और स्वप्न भी सदा पावन होंगे। तो ऐसा नशा रहता है? वैसे भी सेवाधारी मैजारटी कुमारियाँ हैं। कुमारियाँ डबल कुमारियाँ हो गई, ब्रह्माकुमारी भी और कुमारी भी। तो कितनी महान हो गई। कुमारी की, अब 84 वें अन्तिम जन्म में भी, चरणों की पूजा होती है। तो इतनी पावन बनी हो तब इतनी पूजा हो रही है। कुमारियों को कभी भी झुकने नहीं देंगे। कुमारियों के चरणों में सब झुकते हैं। चरण धोकर पीते हैं। तो वह कौन सी कुमारियाँ हैं? ब्रह्माकुमारियाँ हैं ना! तो सेवाधारी ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें हो। किसकी पूजा हो रही है? आप लोगों की। गीत भी है ना - पूजा होती है घर-घर में...। इसलिए बोलो - जमारी पूजा होती है। बापदादा भी देखो नमस्ते करते हैं ना! तो इतनी पूज्य हो तब तो बाप भी नमस्ते करते हैं। इसी स्मृति स्वरूप में रहने से सदा वृद्धि होती रहेगी। अपनी भी और सेवा की भी। सब विघ्न खत्म हो जायेंगे। इसी स्मृति में सब विशेषतायें भरी हैं। अच्छा

पार्टियों से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:-

1.जीवन की अनेक समस्याओं का हल-तीर्थ स्थान की स्मृति- भाग्य विधाता की भूमि पर पहुँचना यह भी बहुत बड़ा भाग्य है। यह कोई खाली स्थान नहीं है, महान तीर्थस्थान है। वैसे भी भक्ति मार्ग में मानते हैं कि तीर्थ स्थान पर जाने से पाप खत्म हो जाते हैं, लेकिन कब होते हैं, कैसे होते हैं, यह जानते नहीं हैं। इस समय तुम बच्चे अनुभव करते हो कि इस महान तीर्थस्थान पर आने से पुण्य आत्मा बन जाते हैं। यह तीर्थस्थान की स्मृति जीवन की अनेक समस्याओं से पार ले जायेगी। यह स्मृति भी एक तावीज का काम करेगी। जब भी याद करेंगा तो यहाँ के वातावरण की शान्ति और सुख आपके जीवन में इमर्ज हो जायेगा। तो पुण्य आत्मा हो गये ना! इस धरनी पर आना भी भाग्य की निशानी है। इसलिए बहुत-बहुत भाग्यशाली हो। अब भाग्यशाली तो बन गये लेकिन सौभाग्यशाली बनना वा पद्मापद्म भाग्यशाली बनना यह आपके हाथ में है। बाप ने भाग्यशाली बना दिया, यही भाग्य समय प्रति समय सहयोग देता रहेगा। कोई भी बात हो तो मधुवन में बुद्धि से पहुँच जाना। फिर सुख और शान्ति के झूले में झूलने का अनुभव करेंगे। अच्छा!

2.स्वदर्शन चक्रधारी की निशानी है - सफलता स्वरूप। सभी अपने को स्वदर्शन चक्रधारी समझते हो, बाप की जितनी महिमा है, उसी महिमा स्वरूप बने हो? जैसे बाप के हर कर्म चरित्र के रूप में अभी भी गाये जाते हैं ऐसे आपके भी हर कर्म चरित्र समान हो रहे हैं? ऐसे चरित्रवान बने हो, कभी साधारण कर्म तो नहीं होते हैं? जो बाप के समान स्वदर्शन चक्रधारी बने हैं उनसे कभी भी साधारण कर्म हो नहीं सकते। जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता समाई हुई होगी। सफलता होगी या नहीं होगी, यह संकल्प भी नहीं उठ सकता। निश्चय होगा कि सफलता हुई पड़ी है। स्वदर्शन चक्रधारी मायाजीत होंगे। मायाजीत होने के कारण सफलतामूर्त्त होंगे। और जो सफलतामूर्त्त होंगे वह सदा हर कदम में पद्मापद्मपति होंगे। ऐसे पद्मापद्मपति अनुभव करते हो? इतनी कमाई जमा कर ली है जो 21 जन्मों तक चलती रहे। सूर्यवंशी अर्थात् 21 जन्मों के लिए जमा करने वाले। तो सदा हर सेकेण्ड में जमा करते रहो। अच्छा।

3.चैतन्य छीपमाला के दीपकों का कर्त्तव्य है-अंधकार में रोशनी करना। अपने को सदा जगे हुए दीपक समझते हो? आप विश्व के दीपक अविनाशी दीपक हो जिसका यादगार अभी भी दीपमाला मनाई जाती है। तो यह निश्चय और नशा रहता है कि हम दीपमाला के दीपक हैं? अभी तक आपकी माला कितनी सिमरण करते रहते हैं? क्यों सिमरण करते हैं? क्योंकि अंधकार को रोशन करने वाले बने हो। स्वयं को ऐसे सदा जगे हुए दीपक अनुभव करो। टिमटिमाने वाले नहीं। कितने भी तूफान आयें लेकिन सदा एकरस, अखण्ड ज्योति के समान जगे हुए दीपक। ऐसे दीपकों को विश्व भी नमन करती है और बाप भी ऐसे दीपकों के साथ रहते हैं। टिमटिमाते दीपकों के साथ नहीं रहते। बाप जैसे सदा जागती ज्योति है, अखण्ड ज्योति है, अमर ज्योति है, ऐसे बच्चे भी सदा ‘अमर ज्योति'! अमर ज्योति के रूप में भी आपका यादगार है। चैतन्य में बैठे अपने सभी जड़ यादगारों को देख रहे हो। ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें हो।

अच्छा!